"अब हदो के पार हूँ"
फंसा था ज़ुल्फ़-जाल में,
पड़ा था यू बेहाल मैं,
गिरा था तब निढाल मैं
तमस अति विकराल में।
हर पल को मैं था जी रहा,
हर गम के घूट पी रहा,
हाँ, छोड़ गए वो राह में
हुआ था बेपनाह मैं,
नासमझ मैं सोचता था,
मरना उसी की बाह में,
भर रहा था आह मैं,
अश्रु-धार-प्रवाह में,
फिर मिला प्रकाश जो,
पानी किसी की प्यास को
दे गया वो जिंदगी,
सलीका वो सीखा गया,
दोस्त था वैसे तो वो,
मुरीद पर बना गया,
मुरीद पर बना गया।
दिया था हौसला मुझे,
और जिंदगी का अर्थ भी,
खुशी भी है रास्ते में,
और मिलेंगे दर्द भी,
अब मुझे रुकना नही,
कही भी तो झुकना नही,
चलना जीवन का नाम है,
रुके हो तो तमाम है।
वक़्त था गुजर गया,
मैं भी खूब डर गया,
पर अब जो उठ खड़ा हूँ मैं,
जिद पे इक अड़ा हूँ मै,
नजरें जहां जमी मेरी,
होगी वहीं जमीं मेरी,
हिम्मतों से दोस्ती,
हौसलों से रिश्ते है,
फंसे जो मन के द्वंद्व में,
घुन के जैसे पिसते है,
पर अब!
अब दिल हुआ पत्थर सा है,
झीनी किसी चद्दर सा है,
हवा का कतरा आये जाए,
इसे कोई हिला ना पाए,
जितना टूट सकता था मैं,
उतना टूट मैं चुका,
सुन तो ए मेरे खुदा,
इससे ज्यादा ना झुका,
धधकती तेज आग हूँ,
राज में प्रयाग हूँ,
अब हदों के पार हूँ,
धधक रहा अंगार हूँ,
पाथेय का मैं तीर हूँ,
गांडीव हूँ, शमशीर हूँ,
प्रताप का मैं भाल हूँ,
ज़रद सितारा लाल हूँ,
पीयूष की मैं धार हूँ,
घोर मैं प्रहार हूँ,
थका हुआ जरूर हूँ,
माँ बाप का गुरुर हूँ,
करते मेरी फिक्र जो,
करेंगे कल को फख्र वो,
बनूँगा इक मिसाल मैं,
बेधड़क सी ढाल मैं,
अब हदो के पार हूँ,
अब हदो के पार हूँ।"
Written by: Yogesh Jangid
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